रक्तबीज से युद्ध में, हुआ मात को भान!
एक मरे सौ जन्मते, यह कैसा वरदान!!
वर्ष हजारों बीत गये, हुआ ना युद्ध समाप्त!
दारूण दु:ख देता रहा, देवों को संताप!!
सिंह अष्टदल कर दिए, रक्तबीज ने नाश!
दुर्गा धरा पे गिर गईं, थर्राया आकाश!!
क्रोध बदन में भर गया, नैन हुए विकराल!
भूमण्डल थर्रा रहा, माँ का देख ये हाल!!
नेत्र तीसरा खुल गया, मारी जब हुंकार!
महाविनाशन प्रकट हुई, मच गई चीख पुकार!!
खप्पर और खटवांग लिए, बढ़ी दुष्ट की ओर!
युद्ध प्रचण्ड और हो उठा, काली हुई कठोर!!
बावन भैरव रक्त मरी, हुए कालका संग!
आज समझ आ जाएगा, तुझे युद्ध का ढंग!!
इतना कह नरसिंहिका, किया प्रचण्ड प्रहार!
दानव भी सज हो उठा, पल में रोका वार!!
नरसिंही मातेश्वरी, गिरी भुवन में जाय!
सिंधु सुता नारायणी, सुदर्शन लिया उठाय!!
मुण्ड कट गया दानव का, गिरा धरा पर जाय!
धरा रक्तमय हो गई, दानव दल घबराय!!
रक्त की इक इक बूँद से, उपजे हजारों वीर!
रक्तबीज सम देह हैं, संकट हुआ गंभीर!!
इक इक योद्धा मारकर, करने लगी रक्तपान!
बूंद धरा पर गिरे नहीं, समझ गई वरदान!!
क्रोधी नाग सी मारती, इक इक पर फुंकार!
महावेगिनि करने लगी, दानव का संहार!!
जिह्वा को रणभूमि में, माँ ने दिया पसार!
रक्त की इक इक बूंद का, करने लगी आहार!!
अंत किया रक्तबीज का, काट लिया है मुण्ड!
काली की हुंकार से, भागा शेष है झुण्ड!!
लेखक
जय सियाराम राम
🔱जय माँ श्मशान काली 🔱
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